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लेखनी प्रतियोगिता - कविता 🧚🧚कल्पना🧚🧚 विजय पोखरणा "यस"03-Jan-2023

🧚🧚कल्पना🧚🧚

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आंखे बोझिल हो गई
कल्पना में खो गई
काश मैं पंछी होती
उड़ती परी बन नभ में

दाना चुगती वन उपवन में
पल में पार करती नदी नाले
और कल कल बहते झरने
कभी करती फूलों का रस पान

नहीं कोई संग्रह करती
मैं स्वछंद सी डाली डाली उड़ती
आकाश में लांग ड्राइव पर जाती
नहीं टारगेट का कोई भय रहता

उन्मुक्त गगन की सैर करती
इठलाती परी सी नभ में उड़ती
चहचहा कर संगीत बिखराती
आकाश पाताल तुरंत नापती

मैं नभ की रानी होती
अपने मन कि महारानी होती
जग को खुशी से चहकने कि प्रेरणा देती 
अचानक सास कि तेज आवाज़ ने
धरातल पर लोटा दिया
चाय कि आवाज़ ने कल्पना को ढहा दिया
मेरी उन्मुक्त पंछी की अभिलाषा को धूलधूसरित कर दिया 
काश मेरी कल्पना ईश्वर साकार करता
काश मैं पंछी होती
उन्मुक्त गगन की सैर करती।।

✍️ विजय पोखरणा "यस"
अजमेर

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9 Comments

Abhilasha deshpande

04-Jan-2023 07:02 PM

Beautiful

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VIJAY POKHARNA "यस"

04-Jan-2023 07:38 PM

Thanks 🙏

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Raziya bano

04-Jan-2023 11:10 AM

Nice

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VIJAY POKHARNA "यस"

04-Jan-2023 07:39 PM

Thanks 🙏

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Abhinav ji

04-Jan-2023 08:19 AM

Very nice👍👍

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VIJAY POKHARNA "यस"

04-Jan-2023 07:39 PM

Thanks 🙏

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